मेरी शख़्सियत का तारुफ़ क्या करू
मेरे लफ़्ज बया कर देते.....
माना उम्र छोटी है तो क्या
ज़िंदगी का हर एक मंज़र देखॆ है
हर अपने के हाथ में खंजर. ...
ओर पीठ से बहता हुवा लहु देखे है
रास्ते खुद ही तबाही के निकाले हमने.
हमे कौन करता बदनाम
हमने खुद को
अपनॆ लफ़्ज से बदनाम होते देखे है
मेरी शख़्सियत का तारुफ़ क्या करू
मेरे लफ़्ज बया कर देते.....
Mr not perfect
मैं शायर बदनाम